अपकृत्य विधि (टॉर्ट लॉ) एक नागरिक कानून का हिस्सा है, जो किसी व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए टोर्ट लॉ का आयोजन किया जाता है। इसमें किसी भी प्रकार के गैर-कानूनी कृत्य, विविधता, या अधिकार के उल्लंघन के लिए उत्तरदायित्व तय किया जाता है। अपकृत्य विधि में दोष दायित्व और शून्य दायित्व जैसे दो महत्वपूर्ण सिद्धांत शामिल हैं। आयये सविस्तार तत्व हैं:
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1. दोष दायित्व (दोष आधारित उत्तरदायित्व):
यह सिद्धांत इस आधार पर काम करता है कि यदि किसी व्यक्ति की कमजोरी, कमजोरी, या दुर्भावना से किसी अन्य व्यक्ति को नुकसान होता है, तो दोष को नुकसान का नुकसान होता है।
मुख्य विशेषताएं:
1. गुण या दोष का होना अनिवार्य है
पीड़ित को यह साबित करना होता है कि नुकसान का कारण पीओके की गलती, या गैर-कानूनी कृत्य का कारण है।
2. नुकसान का होना जरूरी है
यदि कोई नुकसान नहीं हुआ है, तो सामान का दावा नहीं किया जा सकता।
3. दोष का प्रकार
लापरवाही (लापरवाही): सावधानी न सावधानी के कारण हुआ नुकसान।
जानबूझकर किया गया कार्य (जानबूझकर किया गया कार्य): दुर्भावनापूर्ण कार्य।
सख्त लापरवाही (सख्त लापरवाही): जब कोई भी व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता का पालन करने में असफल हो जाता है।
उदाहरण:
एक डॉक्टर द्वारा इलाज से मरीज की मौत हो गई।
वाहन चालक दल कलाकारों का उल्लंघन करता है, जिससे सड़क दुर्घटना होती है।
प्रमुख केस:
डोनॉग्यू बनाम स्टीवेन्सन (1932): इस मामले में ‘पड़ोसी सिद्धांत’ (पड़ोसी सिद्धांत) स्थापित किया गया था, जिसमें कहा गया था कि प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने कार्य से नुकसान न पहुंचाए।
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2. कोई दोष दायित्व नहीं (निर्दोष उत्तरदायित्व):
इस सिद्धांत के तहत, किसी भी व्यक्ति को दोषी ठहराने के लिए दोषी ठहराया जाता है, भले ही उसकी कोई गलती या बाधा न हो। यह विशेष रूप से उन मामलों में लागू होता है, जहां खतरनाक धर्म या पदार्थ शामिल होते हैं।
मुख्य विशेषताएं:
1. गलत का प्रमाण आवश्यक नहीं है
पीड़ित को यह साबित करने की आवश्यकता नहीं है कि नुकसान करने वाले ने कोई गलती की थी।
2. खतरनाक पर लागू
यह सिद्धांत सैद्धांतिक पर लागू होता है, जहां खतरनाक स्वभाव के रूप में शामिल होता है, जैसे कि खतरनाक उद्योग, रासायनिक पदार्थ, विषाक्त आदि।
3. सख्त दायित्व और पूर्ण दायित्व:
सख्त दायित्व (सख्त उत्तरदायित्व): यदि कोई खतरनाक गतिविधि करने के दौरान नुकसान होता है, तो व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होगा, भले ही वह सभी सुरक्षा उपाय अपनाए हो।
Absolute Liability (पूर्ण उत्तरदायित्व): इसमें कोई अपवाद नहीं होता; यदि हानि हुई है, तो उत्तरदायित्व निश्चित होगा।
उदाहरण:
एक फैक्ट्री से पैकेट गैस का फीचर होता है, जिससे स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है।
किसी भी अवशिष्ट सामग्री के परिवहन के दौरान दुर्घटना होती है।
प्रमुख केस:
1. रायलैंड्स बनाम फ्लेचर (1868): इस मामले में ‘सख्त दायित्व’ का सिद्धांत स्थापित किया गया था।
2. एमसी मेहता बनाम भारत संघ (1987): भारत में ‘पूर्ण दायित्व’ का सिद्धांत विकसित हुआ। यह भोपाल गैस ट्रेजरी जैसे मामलों में लागू हुआ।
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दोष दायित्व और शून्य दायित्व में अंतर:
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निष्कर्ष:
दोष दायित्व उन मामलों में लागू होता है, जहां नुकसान के लिए दोषी ठहराया जाना आवश्यक है।
नो फॉल्ट लायबिलिटी में गलती करना की आवश्यकता नहीं है, और यह जोखिम भरा जोखिम में पीड़ित को लाभ पहुंचाने का एक प्रभावी तरीका है।
दोनों सिद्धांत, न्याय और विनाश की बहाली के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन उनकी प्रकृति और उद्देश्य अलग-अलग हैं।