TORTS OF LAW ORIGIN:-
Torts of law का अस्तित्व बहुत पुराने समय से है और इसका विकास सामान्य रूप से इंग्लैंड के सामान्य कानूनी सिद्धांतों के तहत हुआ। पहले इसे सिर्फ “wrong” या “civil wrong” के रूप में जाना जाता था। इंग्लैंड में “Common Law” के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के तोर्ट्स का विकास हुआ, जो विभिन्न प्रकार के नुकसानों से संबंधित थे।
इन TORTS का उद्देश्य यह था कि किसी व्यक्ति को गलत तरीके से नुकसान पहुँचाने पर, नुकसान पहुँचाने वाले को कानूनी तौर पर दंडित किया जाए और पीड़ित व्यक्ति को उचित मुआवजा मिले।
टॉर्ट (Tort) एक कानूनी शब्द है जिसका अर्थ है “न्यायिक अनुशासन का उल्लंघन” या “किसी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन”। यह एक नागरिक दायित्व है जिसमें किसी व्यक्ति को नुकसान या हानि पहुँचाई जाती है, और इसे न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से न्याय दिलाने के लिए नागरिक कानूनी दायित्व के तहत लिया जाता है। इसे अपराध से भिन्न माना जाता है, क्योंकि अपराध का मामला राज्य या सरकार द्वारा किया जाता है, जबकि टॉर्ट का मामला एक व्यक्तिगत व्यक्ति और दूसरे व्यक्ति के बीच होता है।
टॉर्ट की परिभाषा:
“टॉर्ट एक असमर्थनीय कृत्य है जिसके परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति को नुकसान या हानि होती है, और इसके लिए कानूनी दायित्व हो सकता है।”
टॉर्ट के तत्व (Elements of Tort):
- कृत्य या कार्य (Act or Omission):
टॉर्ट के लिए एक गलत कार्य या कोई कार्य न करना (उल्लंघन) जरूरी है। यह कृत्य किसी व्यक्ति के कानूनी अधिकारों का उल्लंघन करता है, जिससे नुकसान होता है।
- नुकसान (Harm or Loss):
टॉर्ट में नुकसान या हानि होना जरूरी है, जो किसी व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक या संपत्ति संबंधी रूप में हो सकता है।
- अवधारणा (Liability):
टॉर्ट के तहत, दोषी व्यक्ति को उसके कार्य के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है, जिससे पीड़ित को न्याय दिलाया जाता है।
- दोष (Fault):
टॉर्ट में यह साबित किया जाता है कि दोषी व्यक्ति ने जानबूझकर या लापरवाही से गलत कार्य किया, जिससे दूसरा व्यक्ति प्रभावित हुआ।
टॉर्ट के प्रकार (Types of Torts):
- दूसरे व्यक्ति की शारीरिक हानि (Battery):
यह तब होता है जब किसी व्यक्ति को शारीरिक रूप से बिना अनुमति के नुकसान पहुँचाया जाता है। उदाहरण: किसी व्यक्ति को मारना या किसी के शरीर को चोट पहुँचना।
- मानसिक हानि (Assault):
मानसिक या भावनात्मक पीड़ा देना। इसमें किसी व्यक्ति को डर या मानसिक आघात पहुँचाना शामिल है, भले ही शारीरिक संपर्क न हो।
- दूसरे की संपत्ति का नुकसान (Trespass):
यह तब होता है जब कोई व्यक्ति दूसरे की संपत्ति पर बिना अनुमति के प्रवेश करता है या उसे नुकसान पहुँचाता है।
- नौकरी में धोखाधड़ी (Negligence):
जब कोई व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों को हल्के में लेता है, जिससे दूसरे को हानि पहुँचती है। उदाहरण: ड्राइविंग करते समय ध्यान न देना, जिससे दुर्घटना हो।
- मानहानि (Defamation):
किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को जानबूझकर नुकसान पहुँचाना, जिससे उसकी सामाजिक या पेशेवर स्थिति प्रभावित होती है। यह लिखित (Libel) या मौखिक (Slander) रूप में हो सकता है।
- छेड़छाड़ (Nuisance):
किसी व्यक्ति के जीवन या संपत्ति को असुविधाजनक बनाना, जैसे अत्यधिक शोर करना या गंदगी फैलाना।
- गलत तरीके से कारवाई (False Imprisonment):
किसी व्यक्ति को अवैध रूप से बंदी बनाना या उसकी स्वतंत्रता को रुकवाना।
टॉर्ट के उद्देश्य (Objectives of Tort Law):
- न्याय प्रदान करना:
टॉर्ट विधि का उद्देश्य व्यक्ति को उस नुकसान का मुआवजा देना है जो उसे दूसरे व्यक्ति के गलत या लापरवाह कृत्य से हुआ है।
- सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना:
यह सुनिश्चित करना कि नागरिक अपनी मूलभूत स्वतंत्रताओं और अधिकारों का आनंद उठा सकें, और जब इनका उल्लंघन हो, तो उसे न्याय मिलता है।
- उचित दंड (Remedy):
टॉर्ट के द्वारा, पीड़ित व्यक्ति को नुकसान की भरपाई के लिए उचित मुआवजा प्राप्त होता है। यह नुकसान शारीरिक, मानसिक या आर्थिक हो सकता है।
टॉर्ट और अपराध (Tort vs Crime):
टॉर्ट: यह एक नागरिक मामला है, और इसमें पीड़ित व्यक्ति (Plaintiff) नुकसान के लिए मुआवजा मांगता है।
अपराध (Crime): यह एक सार्वजनिक मामला है, जो राज्य या सरकार के द्वारा शुरू किया जाता है, और इसमें दंडात्मक कार्रवाई होती है।
निष्कर्ष:
टॉर्ट कानून का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जब किसी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो उसे कानूनी रूप से मुआवजा और न्याय प्राप्त हो। यह व्यक्तिगत और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
हाँ, Torts कानून एक सिविल कानून (civil law) है। इसका मतलब है कि जब किसी व्यक्ति को टॉर्ट (जैसे कि चोट, नुकसान, या अपमान) पहुँचता है, तो वह सिविल मुकदमा दायर कर सकता है, न कि आपराधिक मुकदमा।
टॉर्ट्स के मामलों में, न्यायालय यह निर्धारित करता है कि किसी व्यक्ति या संगठन ने दूसरों को कैसे नुकसान पहुँचाया, और अगर हाँ, तो पीड़ित व्यक्ति को मुआवजा या क्षतिपूर्ति दी जानी चाहिए।
सिविल मामलों में अपराध की तुलना में दंडात्मक सजा नहीं होती। इसका उद्देश्य मुख्य रूप से नुकसान की भरपाई करना होता है, जबकि आपराधिक मामलों में दंडात्मक कार्रवाई (जैसे जेल या जुर्माना) की जाती है।