judicial process and judges law maker’s
“न्यायिक प्रक्रिया” शब्द का तात्पर्य न्याय की खोज में न्यायाधीश द्वारा किए जाने वाले हर कार्य से है। यह मूल रूप से कानून के अध्ययन तक ही सीमित है। न्यायिक प्रक्रिया मूल रूप से न्यायालय की संपूर्ण जटिल घटना है, और प्रक्रिया के बीच में कमियों को खोजना इस परियोजना का उद्देश्य है। गोलकनाथ मामले से लेकर न्यायमूर्ति केएस पुट्टस्वामी मामले (आधार निर्णय) तक, विभिन्न ऐतिहासिक केस कानूनों के माध्यम से अनुच्छेद 21 की अध्ययनशील और संतुलित न्यायिक व्याख्या के बावजूद कुछ मौलिक अधिकार किसी न किसी तरह से प्रभावित हुए। सुप्रीम कोर्ट के एक प्रसिद्ध न्यायाधीश ने कहा कि मनुष्य अचूक नहीं है और गलतियाँ कर सकता है। यदि कोई गलती गलती से हो जाती है, तो वह गलती है, और यदि कोई गलती लंबे समय तक बनी रहती है, तो उसे अन्याय कहा जाता है।
संक्षेप मैं न्यायाधीश अपने निर्णय के आधार वाक्य की खोज करते हैं अगर उसके आधार ठोस में स्पष्ट हैं तो उसका निर्णय अधिक प्रभावी व सम्मान योग्य होगा लेकिन यदि किसी निर्णय का आधार ठोस नहीं है तो ऐसा निर्णय प्रभाव बहुत ही सीमित रहेगा न्यायाधीश जिन आधार वाक्य पर निर्णय देते हैं वह आधार वाक्य दो प्रकार के हो सकते हैं पहले प्रांजल आधार वाक्य अर्थात स्पष्ट या पारदर्शी दूसरा अपरांचल आधार वाक्य अर्थात और स्पष्ट या अपारदर्शी
जहां प्रांजल आधार वाक्य होता है वहां न्यायाधीश को कम विवेक का प्रयोग करना होता है प्रांजल आधार भाग का विश्लेषण कर निर्णय पर पहुंच सकता है वह निर्णय निर्माण कर सकता है जहां पर आधार वाक्य अप्राजंल है वहां विश्लेषणात्मक तर्क युक्ति द्वारा निर्णय निर्माण संभव नहीं ऐसे मामलों में न्यायालय की विधि न्यायिक तर्क युक्ति के विवेक का प्रयोग करने की अपेक्षा की जाती है
महत्वपूर्ण बात जहां प्रांजल आधार वाक्य को न्यायिक सृजनशीलता नहीं करना पड़ता क्योंकि वह अपने आप में ही न्याय सृजनशीलता उत्पन्न करता है अर्थात व स्वयं ही अपने आप में स्पष्ट घोषणा करता है
अब प्रश्न उठता है कि यदि प्राजंलता आधार वाक्य स्पष्ट नहीं है तो निर्णय ही सही नहीं होगा प्रथम मामला डायरेक्टर ऑफ राशनिंग पश्चिम बंगाल वर्सेस कोलकाता कॉरपोरेशन और द्वितीय मामला लीगल रिमेंबरयंस पश्चिम बंगाल वर्सेस कोलकाता कॉरपोरेशन
पहले वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इंग्लैंड के क्राउन की स्थिति को मानते हुए आधार वाक्य बनाया था कि राजा सविधि से बाध्य नहीं होता है
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लेकिन दूसरे वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने या आधार वाक्य बनाए की राज्य संविधि से इस प्रकार वाद्य है जैसा की एक प्राइवेट व्यक्ति जब तक की समृद्धि धारा उसे मुक्ति ना दी गई क्योंकि एक्ट के तहत राज्य को मुक्ति नहीं दी गई थी अतः लाइसेंस लेना आवश्यक था।
आप प्रांजल आधार वाक्य की स्थिति और स्पष्ट आधार वाक्य मामले ज्यादा समस्या उत्पन्न करते हैं ऐसे मामले विश्लेषणात्मक युक्ति से काम नहीं चल सकता ऐसे मामले में न्यायिक तर्क युक्ति लागू होती है इसकी तीन प्रमुख स्थितियां उत्पन्न हो सकती है यह स्थितियां हैं
1 बिल्कुल नवीन स्थिति जिसमें निर्णय हेतु कोई सुविधाजनक युक्ति पहले से विधि द्वारा उत्पन्न नहीं होते हाल्ट की भाषा में खुले विन्यास का मामला माना जाता है
2. वे परिस्थितियों जिम दो या दो से अधिक परस्पर प्रतिरोधी आधार वाक्य विवाद के निपटारे के लिए न्यायालय के सम्मुख मौजूद है जिसमें न्यायालय की विधि को किसी एक का चयन करना है जैसे donough बनाम स्टीवेंसन का मामला
३. तीसरी तरह के मामले होते हैं जिसमें प्रांजल आधार वाक्य न्यायाधीश के पास उपलब्ध होता है लेकिन समसामयिक यथार्ता में उचित न मानकर वह उसे लागू करने से इनकार कर देता है जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने मेनका गांधी वर्सेस भारत संघ के निर्णय में दिया जा सकता है इसमें सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा की विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया का भीम का अर्थ उचित निष्पक्ष एवं मनमाना पूर्ण रहित प्रक्रिया से है
प्रश्न क्या जज विधि का निर्माण करता है
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क्या न्यायाधीश विधि का निर्माण करता है
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न्यायाधीश सीधे विधि (कानून) का निर्माण नहीं करता, बल्कि वह पहले से बने हुए कानून की व्याख्या करता है और उसके अनुसार निर्णय देता है। कानून का निर्माण विधायिका (Legislature) करती है, जो संसद या विधानमंडल के रूप में होती है। न्यायाधीश कानून को लागू करने और उसकी व्याख्या करने का कार्य करता है।
हालांकि, कभी-कभी न्यायाधीशों द्वारा दिए गए निर्णयों में ऐसी व्याख्या होती है जो कानून की समझ में नई दिशा देती है, जिसे न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) कहा जाता है। इसके माध्यम से न्यायाधीश के निर्णय कानून के विकास में योगदान कर सकते हैं, विशेष रूप से जब कोई कानून अस्पष्ट हो या नए संदर्भों में उसे लागू करने की आवश्यकता हो।
अब प्रश्न लिया उठना है कि न्यायालय न्यायिक सक्रियता क्या है।
जुडिशल एक्टिविटीज निक सक्रियता में श्री जनशीलता छुपी है वैसे ही नायक सीजन चलता में सक्रियता छिपी हुई है इसका विभाजन करना कठिन होता है की दोनों में पहले प्रारंभ कौन होता है संक्षेप में नायक सक्रियता जो पहले कभी नहीं आया उसे पर भी विधि का निर्माण करना इसमें कोर्ट विधायिका और कार्यपालिका के कार्यों को संपादित करने लगता है वर्तमान समय में कोर्ट में अपनी संवैधानिक और सामाजिक शक्ति का प्रयोग लोक नीति में परिवर्तन के लिए किया है जिससे सभी सरकारी विभाग और प्राइवेट व्यवसाय प्रभावित हो रहे हैं न्याय न्यायिक शक्ति का प्रयोग समिति के निर्वाचन करते समय साथ अन्य कार्य क्षेत्र का विस्तार किया है जिसमें लोक कल्याण प्रशासन
दूसरा शिक्षा नीति
तीसरा नियोजन नीति
चौथा सड़क व पुल निर्माण
पांचवा स्वचालित वाहन व सुरक्षा मानक सातवां प्राकृतिक संपदा का प्रशासन इत्यादि सम्मिलित हो गए हैं इंग्लैंड में कॉमन लॉ जस्जो द्वारा निर्मित विधि है वहां संसद के बड़े सदन हाउस आफ लॉर्ड न्यायालय के रूप में भी कार्य करते हैं
समस्या शक्तियों का पृथक्करण समस्या तो वहां होती है जहां संघीय शासन प्रणाली है और शक्तियों का पृथक्करण है जब कोर्ट दूसरे के कर्तव्य को पूरा करने लगती है और उन्होंने निर्देश करती है कोर्ट अपने सीमा से आगे बढ़ देती है जहां उनके पास राइट ड्यूटी नहीं है कानून निर्माण करने की तो ऐसे ही न्यायिक सक्रियता की स्थिति करते हैं
न्यायिक सक्रियता दो प्रकार से होता है पहले परंपरावादी न्यायिक सक्रियता जहां सरकार को कुछ करने से रोकना होता है जैसे संविधान के आर्टिकल 13 उपखंड दो के तहत राज्य को ऐसी कोई विधि नहीं बनाएगा जो फंडामेंटल राइट की उलझन में है अर्थात रोकना दूसरा प्रगतिशील न्यायिक सक्रियता यहां सरकार को कुछ करने को कहा जाता है अगर गवर्नमेंट नहीं कर पाती है तो न्यायालय सजक प्रहरी के रूप में कार्य करती है
निष्कर्ष ऐसे में न्यायिक सक्रियता वहीं तक ठीक है जहां तक विधायिका के क्षेत्र से टकराहट उत्पन्न नहीं करती हूं और उसे जन्म समर्थन प्राप्त होता है न्यायिक सक्रियता संबंधी बाद केशवानंद भारती गोरखनाथ का केस द्वितीय मेनका गांधी के केस में नायक सक्रियता का दूसरा चरण प्रारंभ हुआ जिसमें फंडामेंटल राइट को राज्य के नीति निर्देशक तत्व को सम्मिलित माना नेक्स्ट
बंधुआ मुक्ति मोर्चा केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी मानक से मजदूरी काम दिया जाना अभी बलात श्रम माना जाएगा और आर्टिकल ३८की उदार व्याख्या की
लोकहित वाद में सुप्रीम कोर्ट ने सक्रियता में और ज्यादा सहयोग किया जिसे उपचार में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए रुदल शाह बनाम बिहार राज्य और भीम सिंह बनाम जम्मू कश्मीर निरोध को अवैध माना पीपल यूनियन एंड डेमोक्रेटिक राइट्स वर्सेस पुलिस आयुक्त दिल्ली में फर्जी मुठभेड़ को अवैधानिक करार दिया पुलिस कस्टडी में मौत को असंवैधानिक माना सहेली वर्सेस पुलिस आयुक्त के केस में सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ित पत्रकार को प्रतिकर देने का आदेश दिया इसी तरह अंतर्राष्ट्रीय अभी समय प्रथम विधाओं को विशाखा वर्सेस राजस्थान राज्य और गीता हरिहरन वर्सेस आरबीआई के केस में घरेलू विधि का निर्वाचन करते हुए न्यायालय का दायित्व है कि अंतरराष्ट्रीय अभी समय और प्रथम विधाओं का सम्मान करें
इंदिरा साहनी वर्सेस भारत संघ के केस में जाति के आधार पर पिछड़े पान का निर्धारण किया जा सकता है परंतु पिछड़े वर्ग के उन्नत वर्ग क्रीमी लेयर को आरक्षण से वंचित रखा जाएगा कोर्ट ने कहा कि आरक्षण की सीमा 50% तक ही होगी
प्राविधिक और नीतिगत कर्तव्यों की सफलता में सुप्रीम कोर्ट ने कैसे बेलूर सिटीजन वेलफेयर फोरम में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत यदि प्राधिकारियों से अपेक्षित कर्तव्य को पूरा करने में निष्क्रिय होते हैं और केंद्र सरकार उचित निर्देश जारी करने में निष्क्री होते हैं तो सुप्रीम कोर्ट ऐसे न्यायिक सक्रियता करने हेतु मजबूर हो जाती है जिस कारण ऐसी समस्या दूर करने में सुप्रीम कोर्ट अपना कंधा नहीं उसका आएगा कि यह नीतिगत कार्यों का संबंधित मामला है
मूल कर्तव्य को भी अधिकार के रूप में सुप्रीम कोर्ट ने घोषित किया है सच्चिदानंद पांडे के केस में कैसे आईपीएल ऑक्शन वर्सेस देहरादून के केस में और रतलाम म्युनिसिपालिटी वर्सेस वर्दी चंद्र के केस में