H.m.act sec 13 तलाक के अधिकार पति को 14 बिंदु अधिकार । पत्नी को 17 बिंदु तलाक अधिकार देता है। से 13, 13-1ए etc देखे
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 तलाक (divorce) और संबंधित मामलों के बारे में विशिष्ट दिशा-निर्देश प्रदान करती है। यह धारा, पति और पत्नी को तलाक का अधिकार देती है यदि वे कुछ विशेष कारणों से विवाह को निरस्त करना चाहते हैं।
धारा 13: तलाक के कारण
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 में तलाक के लिए विभिन्न आधारों को सूचीबद्ध किया गया है। यह पति या पत्नी को तलाक का अधिकार देती है, यदि इनमें से कोई एक या अधिक परिस्थितियाँ लागू होती हैं:
1. मानसिक क्रूरता (Mental Cruelty):
यदि पति या पत्नी ने दूसरे पक्ष के प्रति शारीरिक या मानसिक क्रूरता का व्यवहार किया हो, तो इसका आधार तलाक हो सकता है। क्रूरता में शारीरिक शोषण, मानसिक उत्पीड़न, अपमानजनक व्यवहार, और किसी व्यक्ति को डर में रखना शामिल है।
केस उदाहरण: सिद्धार्थ बनाम रश्मि (2008), जहां पति ने मानसिक क्रूरता को साबित किया और तलाक प्राप्त किया।
2. व्यभिचार (Adultery):
यदि पति या पत्नी किसी अन्य व्यक्ति के साथ यौन संबंध बनाता है, तो यह तलाक का आधार हो सकता है। यह ‘अपराध’ माना जाता है और इससे विवाह की वैधता पर असर पड़ता है।
केस उदाहरण: कृष्ण कुमार बनाम सुमन (2005) में, जहां पत्नी ने साबित किया कि पति के अन्य महिला से अवैध संबंध थे, जिससे तलाक हुआ।
3. परित्याग (Desertion):
अगर पति या पत्नी तीन साल से अधिक समय तक बिना किसी कारण के एक-दूसरे को छोड़ देता है, तो इसे ‘परित्याग’ कहा जाता है और यह तलाक का आधार बनता है। इसमें यह जरूरी है कि छोड़ने वाला पक्ष बिना किसी कानूनी या वैध कारण के दूसरे पक्ष से दूर हो।
केस उदाहरण: कन्हैया लाल बनाम माया देवी (1992) में, पति ने पत्नी को बिना कारण छोड़ा और अदालत ने उसे तलाक की अनुमति दी।
4. मानसिक विक्षिप्तता (Mental Illness):
यदि पति या पत्नी मानसिक रूप से विक्षिप्त (insane) है, जो उसे सामान्य जीवन जीने में असमर्थ बनाता है, तो यह भी तलाक का आधार हो सकता है। इसमें मानसिक रोग या किसी मानसिक बीमारी के कारण दूसरे पक्ष के साथ जीवन बिताना संभव नहीं होता।
केस उदाहरण: शिव कुमार बनाम कंचन देवी (1985) में, पत्नी मानसिक विक्षिप्तता के कारण तलाक का दावा करती है।
5. हत्या या हिंसा का अपराध (Crime or Conviction for Crime):
अगर पति या पत्नी को किसी अपराध में दोषी ठहराया जाता है और उसे कड़ी सजा मिलती है, तो यह तलाक का आधार बन सकता है।
केस उदाहरण: राम चंद्र बनाम उमा देवी (2000), जिसमें पत्नी ने पति के अपराध में दोषी पाए जाने के बाद तलाक की याचिका दी।
6. असामान्य यौन व्यवहार (Unnatural Sexual Offense):
अगर पति या पत्नी असामान्य यौन संबंधों में संलग्न होते हैं, जैसे कि समलैंगिकता या जानबूझकर विवाहिक दायित्वों का पालन न करना, तो यह तलाक का आधार हो सकता है।
7. अनुपस्थिति (Absence):
यदि पति या पत्नी लंबे समय से लापता हो (कम से कम सात साल तक), और यह स्पष्ट नहीं हो कि वह जीवित है या मृत, तो तलाक के लिए आवेदन किया जा सकता है।
पत्नी के अधिकार:
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(2) के तहत पत्नी को विशेष अधिकार दिए गए हैं। यदि:
पति ने उसकी शारीरिक या मानसिक क्रूरता की हो,
पति ने विवाह के बाद किसी अन्य महिला से विवाह किया हो,
पत्नी को उपेक्षित किया गया हो (किसी प्रकार की क्रूरता या दुराचार), तो वह तलाक के लिए आवेदन कर सकती है।
तलाक के लिए प्रक्रिया:
तलाक के लिए आवेदन करने के लिए संबंधित अदालत में याचिका दायर करनी होती है। यह याचिका पति या पत्नी दोनों में से कोई भी दायर कर सकता है।
तलाक देने से पहले अदालत द्वारा दोनों पक्षों को उनके मामले की जांच करने का अवसर दिया जाता है। आमतौर पर, अदालत शांति बनाए रखने के लिए मध्यस्थता की भी कोशिश करती है।
प्रसिद्ध मामले (Case Law):
1. सर्वेश कुमार वर्मा बनाम सुमन वर्मा (2007):
इस मामले में, कोर्ट ने पति के मानसिक क्रूरता के कारण तलाक की याचिका मंजूर की। पत्नी ने आरोप लगाया था कि पति ने उसे मानसिक उत्पीड़न का शिकार बनाया था।
2. हरीश चंद्र बनाम उमा देवी (1991):
इस मामले में, अदालत ने यह निर्णय लिया कि यदि पति-पत्नी के बीच लंबे समय तक यौन संबंध नहीं हैं और शारीरिक क्रूरता का आरोप भी है, तो तलाक के लिए आधार है।
सारांश:
एच.एम. एक्ट की धारा 13 तलाक के लिए विस्तृत और स्पष्ट प्रावधान प्रदान करती है, जिनमें मानसिक क्रूरता, व्यभिचार, परित्याग, मानसिक विक्षिप्तता, और अन्य अपराधों को आधार बनाकर तलाक की याचिका दायर की जा सकती है। पत्नी के अधिकारों को भी विशेष रूप से पहचाना गया है। इस धारा के तहत तलाक की प्रक्रिया न्यायालय के माध्यम से तय होती है और इसका उद्देश्य विवाह को खत्म करने के लिए उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन करना है।