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Deceit in torts

Posted on January 26, 2025 By soni.vidya22@gmail.com No Comments on Deceit in torts
धोखाधड़ी (Deceit IN TORTS) एक प्रकार का अपराध है जो “टॉर्ट लॉ” में आता है, जिसमें किसी व्यक्ति द्वारा जानबूझकर दूसरे व्यक्ति को धोखा देने के लिए गलत जानकारी दी जाती है, जिसके कारण धोखा खाने वाले व्यक्ति को नुकसान होता है। धोखाधड़ी का उद्देश्य किसी को झूठी जानकारी के आधार पर किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित करना होता है, जिससे वह कार्य उस व्यक्ति को हानि पहुँचाता है।
धोखाधड़ी (Deceit) के तत्व: धोखाधड़ी का मुकदमा सफलतापूर्वक साबित करने के लिए निम्नलिखित तत्वों की आवश्यकता होती है:
  1. झूठा वक्तव्य (False Representation): यह साबित करना कि आरोपी ने किसी तथ्यों का झूठा बयान किया था।
  2. झूठे बयान का जानबूझकर या लापरवाही से दिया जाना (Knowledge or Reckless Disregard): आरोपी जानता था कि यह बयान झूठा है, या उसे इस बात का परवाह नहीं था कि वह जो बयान दे रहा है वह झूठा हो सकता है।
  3. धोखा देने की मंशा (Intention to Deceive): आरोपी ने यह झूठा बयान जानबूझकर, किसी अन्य व्यक्ति को धोखा देने और उसे गलत कार्य करने के लिए प्रेरित करने की मंशा से दिया।
  4. विश्वास (Reliance): पीड़ित ने झूठे बयान पर विश्वास किया और उसी के आधार पर कोई कार्य किया।
  5. नुकसान (Damage): पीड़ित को विश्वास करने के कारण नुकसान हुआ, जैसे वित्तीय नुकसान या अन्य प्रकार का हानि।
महत्वपूर्ण केस:
  1. Derry v. Peek (1889): यह केस धोखाधड़ी के सिद्धांत का एक प्रसिद्ध उदाहरण है। इसमें, कोर्ट ने यह तय किया कि धोखाधड़ी के मामले में केवल यह साबित करना कि बयान झूठा था, पर्याप्त नहीं है। यह भी साबित करना होगा कि आरोपी ने इसे जानबूझकर किया था, यानी उसकी मंशा धोखा देने की थी। इस मामले में, अदालत ने कहा कि अगर व्यक्ति ने गलत बयान दिया है, लेकिन उसने यह जानबूझकर नहीं किया, तो यह धोखाधड़ी नहीं मानी जाएगी।
  2. Hedley Byrne & Co Ltd v. Heller & Partners Ltd (1964): यह मामला उस समय महत्वपूर्ण था जब अदालत ने यह माना कि किसी व्यक्ति की धोखाधड़ी की वजह से दूसरी पार्टी को आर्थिक नुकसान हुआ, तो उसे नुकसान की भरपाई का हक हो सकता है, भले ही धोखाधड़ी का उद्देश्य नुकसान पहुँचाना न रहा हो। इस केस ने टॉर्ट लॉ में “गलत सूचना देने” के सिद्धांत को मजबूती से स्थापित किया।
  3. Redgrave v. Hurd (1881): इस केस में, एक व्यक्ति ने अपने घर को बेचने के लिए एक झूठा बयान दिया था कि वह संपत्ति में कुछ विशेष सुविधाएँ प्रदान करेगा। दूसरे पक्ष ने उस पर विश्वास किया और नुकसान उठाया। कोर्ट ने कहा कि धोखाधड़ी के मामले में, यदि किसी ने जानबूझकर झूठा बयान दिया है और दूसरे पक्ष ने उस पर विश्वास किया है, तो उसे नुकसान की भरपाई का अधिकार है।
निष्कर्ष: धोखाधड़ी (Deceit) एक गंभीर प्रकार का अपराध है, जिसमें जानबूझकर झूठ बोलकर किसी को नुकसान पहुँचाना होता है। इसे साबित करने के लिए किसी व्यक्ति की मंशा और बयान की सत्यता की जांच की जाती है। उपरोक्त केसों से यह स्पष्ट है कि यदि कोई व्यक्ति धोखा देने की मंशा से गलत जानकारी देता है और उसके कारण दूसरे को वित्तीय या अन्य प्रकार का नुकसान होता है, तो वह उत्तरदायी होगा।

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