१. यह राज्य के विधायक अंग संसद अथवा राज्य विधायकों द्वारा निर्मित है
२ यह विचार पूर्वक अर्थात जानबूझकर निर्मित किया गया नियमों का संग्रह है
३ यह प्रारूपिक स्वरूप लिखित होता है
४ इसमें अन्य स्रोतों की अपेक्षा अध्यापक तत्व होता है जिसके परिणाम स्वरूप यह विधि के अन्य स्रोतों से ज्यादा वरीयमांन है।
प्रश्न यह उठता है की क्या संविधि statute की परिभाषा संविधान में दिया गया है
उत्तर,,, भारतीय संविधान के अंतर्गत संसद अथवा राज्य की विधायिकाओं द्वारा आधुनिक विधि के लिए विधान एवं स्टेट्यूट का प्रयोग नहीं किया गया है विधि law का प्रयोग स्टेच्यू सविधि पर्याय के रूपमें किया गया है।
प्रश्न यह उठता है की विधि लॉ शब्द के अंतर्गतकौन-कौन से शब्दों को विधि भारतीय संविधान में दर्जा दिया गया है इसके लिए भारतीय संविधान के आर्टिकल 13 तीन में या उपबंध दिया गया है की आदेश अध्यादेश नियम अप नियम रूडी प्रथा यह सब विधि का बल प्राप्त है।
उदाहरण भारतीय संविधान केतहत
आर्टिकल 245 (१ )के तहत सांसद और राज्य की विधायिका में वीधीयो का निर्माण कर सकती है
Ar १३ राज ऐसी कोई विधि नहीं बनाएगा जो भारतीय संविधान के पार्ट थर्ड में प्रदत्त अधिकारों को चींटी हैं अथवा कम करती हो।
Ar२४५. विधि के प्राधिकार के बिना ना तो कोई कर वसूला जाएगा और ना तो कोई कर अधिरोपित किया जाएगा
सविधि का अर्थ भारतीय परिप्रेक्ष्य में शिथिल रूप में लिया जाता है कभी-कभी गति पर संस्थाओं अथवा निगमन द्वारा स्थापित नियमों को statute कहा जाता है उदाहरण के रूप में यूनिवर्सिटी द्वारा अंगीकृत नियमों को statute की संख्या दी जाती है इन्हें हिंदी भाषा में परी नियमावली के नाम से भी जाना जाता है।
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सांविधिक निर्वचन की आवश्यकता क्यों पड़ती है
सांविधिक निर्वचन की आवश्यकता इसलिए पड़ती है क्योंकि कानूनों और विधियों को सामान्य भाषा में लिखा जाता है, लेकिन उनके लागू होने पर विशेष परिस्थितियों में उनकी व्याख्या की आवश्यकता होती है। इसकी कुछ मुख्य वजहें निम्नलिखित हैं:
- भाषाई अस्पष्टता: कानून में प्रयुक्त शब्द कभी-कभी अस्पष्ट या बहुव्याख्यात्मक हो सकते हैं। इन शब्दों का सही अर्थ निकालने के लिए निर्वचन आवश्यक होता है।
- विधान की उद्देश्यपूर्ति: यह सुनिश्चित करने के लिए कि कानून के प्रावधानों का उद्देश्य सही ढंग से पूरा हो, अदालतें सांविधिक निर्वचन का सहारा लेती हैं।
- बदलते सामाजिक और तकनीकी संदर्भ: समय के साथ सामाजिक और तकनीकी परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं, जिसके कारण पुराने कानूनों का आधुनिक संदर्भ में पुनः व्याख्या आवश्यक हो जाती है।
- विधान की अस्पष्टता: कभी-कभी कानून का मसौदा स्पष्ट नहीं होता है या उसमें किसी स्थिति का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं होता। ऐसे में न्यायालय को सही अर्थ निकालने के लिए निर्वचन करना पड़ता है।
- संवैधानिकता की जाँच: यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई कानून संविधान के विपरीत न हो, न्यायालय उसे उचित रूप से निर्वचित करता है।
इन कारणों से, सांविधिक निर्वचन कानून को समझने, लागू करने और न्यायिक दृष्टिकोण से सही निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है
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विधि के नियम और निर्वचन के नियमों में क्या अंतर है
विधि के नियम (Legal Rules) और निर्वचन के नियमों (Interpretation Rules) में मुख्य अंतर उनके उद्देश्य और उपयोग में होता है:
- विधि के नियम (Legal Rules):
- ये वे नियम होते हैं जो किसी विधायिका (जैसे संसद या विधान सभा) द्वारा बनाए जाते हैं।
- ये कानून का हिस्सा होते हैं और नागरिकों, संस्थानों, और न्यायालयों पर बाध्यकारी होते हैं।
- विधि के नियमों का उद्देश्य समाज में व्यवस्था और अनुशासन बनाए रखना होता है।
- निर्वचन के नियम (Interpretation Rules):
- ये नियम उन तरीकों और सिद्धांतों को संदर्भित करते हैं जिनका उपयोग न्यायालय और अन्य कानूनी संस्थान विधि के नियमों की व्याख्या या अर्थ समझने के लिए करते हैं।
- जब विधि के नियम अस्पष्ट, जटिल या विभिन्न तरीकों से समझे जा सकते हैं, तब निर्वचन के नियम न्यायालयों को सही अर्थ निर्धारित करने में मदद करते हैं।
- निर्वचन के नियम कानून का हिस्सा नहीं होते, बल्कि वे न्यायिक प्रणाली द्वारा विकसित किए गए सिद्धांत होते हैं।
सारांश:
विधि के नियम वे नियम हैं जो विधायिका द्वारा स्थापित किए जाते हैं, जबकि निर्वचन के नियम वे सिद्धांत हैं जो इन नियमों की व्याख्या या अर्थ को समझने के लिए उपयोग किए जाते हैं।