TORTS OF LAW NOT CODIFIED LAW IN INDIA अपकृत्य विधि (Law of Torts) भारत में संज्ञापित (Codified) नहीं है, अर्थात यह किसी एक संहिता (Code) में व्यवस्थित रूप से संकलित नहीं है। यह मुख्य रूप से कॉमन लॉ (Common Law) पर आधारित है, जिसे ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में लागू किया गया था। भारतीय विधि आयोग (Law Commission of India) ने इस विषय पर कई बार विचार किया, लेकिन इसे संहिताबद्ध करने का स्पष्ट कदम अभी तक नहीं उठाया गया है।
भारतीय विधि आयोग के कदम और सुझाव:
- संहिताबद्ध करने का विचार:
भारतीय विधि आयोग ने इस मुद्दे पर विचार किया है कि क्या भारत में अपकृत्य कानून को संहिताबद्ध करना चाहिए।
1886 में पहली बार इस विषय पर चर्चा हुई कि अपकृत्य कानून को भारत में स्पष्ट और सरल रूप में लाने के लिए संहिताबद्ध किया जा सकता है।
हालांकि, यह महसूस किया गया कि कॉमन लॉ में लचीलापन (flexibility) है और इसे हर परिस्थिति में लागू किया जा सकता है। संहिताबद्ध करने से यह लचीलापन खो सकता है।
- रिपोर्ट्स:
भारतीय विधि आयोग ने कुछ मामलों में अपकृत्य विधि पर अध्ययन किया है और रिपोर्टें प्रकाशित की हैं।
1956 में भारतीय विधि आयोग ने अपकृत्य कानून पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इसमें कहा गया कि अपकृत्य कानून को संहिताबद्ध करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह पहले से ही अदालतों के माध्यम से अच्छी तरह से काम कर रहा है।
2016 में, 21वें विधि आयोग ने भी इस पर विचार किया, लेकिन इसे संहिताबद्ध करने की स्पष्ट सिफारिश नहीं की।
- न्यायपालिका की भूमिका:
भारतीय न्यायपालिका (विशेषकर उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय) ने अपकृत्य कानून के तहत कई सिद्धांतों और मानकों को विकसित किया है। यह एक मुख्य कारण है कि विधि आयोग ने इसे संहिताबद्ध करने की सिफारिश नहीं की, क्योंकि न्यायपालिका इसे आवश्यकता के अनुसार व्याख्या कर सकती है।
अपकृत्य कानून के संहिताबद्ध न होने के कारण:
- लचीलापन की आवश्यकता:
अपकृत्य कानून में प्रत्येक मामले के अनुसार अलग-अलग व्याख्या की आवश्यकता होती है। इसे संहिताबद्ध करने से यह जटिल हो सकता है।
- आदर्श कामकाज:
भारतीय न्यायालय पहले से ही इस कानून को प्रभावी तरीके से लागू कर रहे हैं।
- बदलते समय के अनुसार अनुकूलता:
अपकृत्य कानून की प्रकृति ऐसी है कि यह समाज की बदलती जरूरतों के अनुसार विकसित हो सकता है।
निष्कर्ष:
भारतीय विधि आयोग ने अब तक अपकृत्य कानून को संहिताबद्ध करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। आयोग का दृष्टिकोण यह है कि यह कानून न्यायपालिका के माध्यम से प्रभावी रूप से काम कर रहा है और इसे संहिताबद्ध करने की तत्काल आवश्यकता नहीं है।