Skip to content

lawkahtahainsider.com

subject law hindi

मुस्लिम विधि के स्रोत

Posted on January 15, 2025January 15, 2025 By soni.vidya22@gmail.com No Comments on मुस्लिम विधि के स्रोत

मुस्लिम विधि के स्रोत इस्लामिक कानून और न्याय की नींव हैं। ये स्रोत न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और न्यायिक महत्व भी रखते हैं। इन्हें दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:

1. प्राथमिक स्रोत (Primary Sources)

2. द्वितीयक स्रोत (Secondary Sources)

—

1. प्राथमिक स्रोत (Primary Sources)

प्राथमिक स्रोत वह हैं जो सीधे इस्लामी धर्म और उसकी शिक्षाओं से संबंधित हैं। ये स्रोत सर्वोच्च हैं और मुस्लिम समाज में इनका पालन करना अनिवार्य माना जाता है।

(i) कुरान (Quran)

परिभाषा: कुरान इस्लाम का पवित्र ग्रंथ है, जिसे अल्लाह ने पैगंबर मोहम्मद के माध्यम से प्रकट किया। यह मुस्लिम विधि का सबसे पहला और मुख्य स्रोत है।

महत्व:

इसमें धार्मिक, नैतिक, सामाजिक, और कानूनी आदेश दिए गए हैं।

कुरान में लगभग 80 आयतें (श्लोक) कानून से संबंधित हैं, जो विवाह, तलाक, संपत्ति, उत्तराधिकार, अनुबंध, और अपराध जैसे विषयों को संबोधित करती हैं।

उदाहरण:

उत्तराधिकार में पुरुष को महिला की तुलना में अधिक हिस्सा दिया गया है (सूरह अन-निसा, आयत 11)।

विवाह और तलाक से संबंधित निर्देश (सूरह अल-तलक)।

(ii) सुन्नत या हदीस (Sunnah or Hadith)

परिभाषा: सुन्नत पैगंबर मोहम्मद के कथन (कहने), कृत्य (कार्य), और स्वीकृतियों (acceptances) को संदर्भित करता है।

महत्व:

यह कुरान की व्याख्या करता है और उन मामलों में मार्गदर्शन देता है जहां कुरान मौन है।

यह मुस्लिम विधि में दूसरे स्थान पर है।

उदाहरण:

पैगंबर ने कहा, “जिसने किसी वस्तु को पाया, उसे सार्वजनिक रूप से घोषित करें” (खोई हुई संपत्ति पर निर्देश)।

वसीयत (Will) बनाने के संबंध में हदीस: वसीयत में एक-तिहाई से अधिक संपत्ति का प्रावधान नहीं होना चाहिए।

(iii) इज्मा (Ijma)

परिभाषा: इज्मा मुस्लिम धर्मशास्त्रियों (विद्वानों) की सामूहिक सहमति है, जो कुरान और सुन्नत के आधार पर दी जाती है।

महत्व:

इज्मा कुरान और सुन्नत के बाद तीसरा मुख्य स्रोत है।

यह नए मुद्दों को हल करने में मदद करता है, जिनका कुरान और सुन्नत में सीधा समाधान नहीं है।

प्रकार:

उम्मत का इज्मा: सभी मुसलमानों की सहमति।

विद्वानों का इज्मा: केवल इस्लामिक विद्वानों की सहमति।

उदाहरण:

कुरान और सुन्नत में तंबाकू का उल्लेख नहीं है, लेकिन इज्मा ने इसे हानिकारक घोषित किया।

(iv) कियास (Qiyas)

परिभाषा: कियास तर्क और तुलना पर आधारित है। यह कुरान, सुन्नत, और इज्मा के सिद्धांतों का उपयोग करके नए मुद्दों पर निर्णय लेने की प्रक्रिया है।

महत्व:

यह चौथा मुख्य स्रोत है।

यह नए मुद्दों का समाधान खोजने में मदद करता है।

उदाहरण:

शराब (Wine) को कुरान में हराम कहा गया है। इसी आधार पर ड्रग्स (Drugs) को भी कियास द्वारा हराम घोषित किया गया।

—

2. द्वितीयक स्रोत (Secondary Sources)

द्वितीयक स्रोत कुरान और सुन्नत के पूरक हैं और इन्हें विशेष परिस्थितियों में इस्तेमाल किया जाता है।

(i) न्यायिक निर्णय (Judicial Decisions)

समय के साथ न्यायपालिका ने मुस्लिम विधि को लागू करने के लिए कई महत्वपूर्ण फैसले दिए।

उदाहरण: शाह बानो केस, शायरा बानो केस।

(ii) धार्मिक ग्रंथ (Fatwas)

इस्लामिक विद्वानों द्वारा जारी किए गए फैसले, जिन्हें “फतवा” कहा जाता है।

(iii) स्थानीय रीति-रिवाज (Customs and Usages)

स्थानीय रीति-रिवाजों को भी मुस्लिम कानून में स्वीकार किया गया है, जब तक कि वे कुरान और सुन्नत के खिलाफ न हों।

—

महत्व और निष्कर्ष

मुस्लिम विधि के स्रोत धार्मिक और कानूनी दृष्टिकोण से गहन महत्व रखते हैं। कुरान और सुन्नत सर्वोच्च हैं, जबकि इज्मा और कियास आधुनिक परिस्थितियों में समस्याओं को हल करने के लिए आवश्यक हैं। द्वितीयक स्रोतों ने मुस्लिम कानून को समय के साथ प्रासंगिक बनाए रखा है। इन स्रोतों के कारण मुस्लिम विधि में न केवल स्थिरता बल्कि लचीलापन भी है।

मुस्लिम विधि को कोडिफाइड क्यों किया गया?

मुस्लिम विधि को कोडिफाइड (विधिवत संहिताबद्ध) करने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि सभी मुसलमानों के लिए एक समान और स्पष्ट कानून हो। इस प्रक्रिया के पीछे मुख्य कारण निम्नलिखित थे:

1. कानूनी एकरूपता: विभिन्न मुस्लिम समुदायों और उनके अलग-अलग धार्मिक मतों (सुन्नी, शिया आदि) के कारण विवाद होते थे। कोडिफिकेशन से एकरूपता लाई गई।

2. अदालत में स्पष्टता: मुस्लिम कानून में विभिन्न स्रोतों के कारण जटिलता थी। कोडिफिकेशन ने न्यायपालिका के लिए इसे सरल और स्पष्ट बनाया।

3. सामाजिक सुधार: महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए पुराने नियमों में संशोधन करना आवश्यक था।

4. ब्रिटिश शासन का प्रभाव: ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन ने मुस्लिम विधि को कोडिफाई कर न्यायिक प्रणाली में संगठित करने की कोशिश की, ताकि इसे आसानी से लागू किया जा सके।

5. आधुनिकता और सुधार: मुस्लिम विधि के कई पहलू समय और सामाजिक प्रथाओं के साथ अप्रासंगिक हो गए थे। कोडिफिकेशन ने इन सुधारों को शामिल किया।

Uncategorized

Post navigation

Previous Post: मुस्लिम विवाह में शिया और सुन्नी समुदायों के बीच अंतर
Next Post: SHIYA AND SUNN SCHOOL DIFFRENT

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copyright © 2025 lawkahtahainsider.com.

Powered by PressBook WordPress theme