हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 और दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 दोनों ही भरण-पोषण (maintenance) के लिए प्रावधान करते हैं, लेकिन इनका दायरा और आवेदन अलग-अलग है। वर्तमान स्थिति में दोनों कानूनों का उद्देश्य भरण-पोषण का अधिकार सुनिश्चित करना है, लेकिन यह निर्भर करता है कि मामला किस श्रेणी में आता है।
1. हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (Hindu Adoption and Maintenance Act, 1956)
यह कानून हिंदू धर्म के अनुयायियों पर लागू होता है।
पति-पत्नी, माता-पिता और संतान के भरण-पोषण का प्रावधान करता है।
इसमें निम्नलिखित व्यक्तियों को भरण-पोषण का अधिकार है:
पत्नी (पत्नी को पति से)
वृद्ध माता-पिता (संतान से)
अविवाहित बेटी, विधवा बेटी या अपाहिज संतान
दत्तक माता-पिता या दत्तक संतान
महत्वपूर्ण केस:
चंद्रधर दुबे बनाम शारदा देवी (2005): इस मामले में यह तय हुआ कि पत्नी को हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम के तहत भरण-पोषण पाने का अधिकार है यदि वह अपनी आर्थिक स्थिति से असमर्थ है।
भिकाजी बनाम रुक्मिणीबाई (1979): कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एक परित्यक्ता पत्नी का भी अधिकार है, बशर्ते उसकी पुनर्विवाह नहीं हुआ हो।
2. सीआरपीसी की धारा 125 (CrPC Section 125)
यह सभी धर्मों के व्यक्तियों पर लागू होती है, न केवल हिंदुओं पर।
मुख्य रूप से पत्नी, बच्चों और वृद्ध माता-पिता के लिए भरण-पोषण का प्रावधान करती है।
यह एक आपराधिक प्रक्रिया का हिस्सा है और इसका उद्देश्य तत्काल राहत प्रदान करना है।
पति को उसकी पत्नी, नाबालिग बच्चों और वृद्ध माता-पिता को भरण-पोषण देने के लिए बाध्य किया जाता है, बशर्ते वे खुद अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हों।
महत्वपूर्ण केस:
डैनियल लटिफ बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2001): यह केस मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण के अधिकारों पर केंद्रित था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिलाओं को भी धारा 125 के तहत भरण-पोषण का अधिकार है।
शाह बानो केस (1985): यह ऐतिहासिक केस था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिला को धारा 125 के तहत भरण-पोषण का अधिकार दिया, भले ही मुस्लिम पर्सनल लॉ में इसके लिए अलग प्रावधान थे।
दोनों के बीच प्रमुख अंतर
वर्तमान स्थिति:
भरण-पोषण के मामलों में कोर्ट का दृष्टिकोण लिंग समानता और आर्थिक अधिकारों पर केंद्रित है।
भरण-पोषण के दावे के लिए पत्नी को विवाह का सबूत और यह दिखाना होता है कि वह आर्थिक रूप से निर्भर है।
विभिन्न अदालतों ने यह स्पष्ट किया है कि इन कानूनों का उद्देश्य केवल महिलाओं का ही नहीं, बल्कि जरूरतमंद बच्चों और माता-पिता का संरक्षण भी है।
निष्कर्ष:
यदि मामला केवल हिंदू धर्म के अनुयायियों का है और दीर्घकालिक समाधान चाहिए, तो हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम लागू होता है। लेकिन यदि त्वरित राहत और आपराधिक प्रकृति का मामला है, तो CrPC की धारा 125 का सहारा लिया जाता है।