हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) के तहत हिंदू तलाक और मुकदमा के प्रावधान निम्नलिखित हैं:
1. तलाक के कारण (Section 13)
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत, तलाक के लिए पति या पत्नी निम्नलिखित कारणों का हवाला दे सकते हैं:
अत्याचार (Cruelty): यदि किसी एक पक्ष ने दूसरे को शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित किया हो।
परित्याग (Desertion): यदि एक पक्ष ने दूसरे को कम से कम 2 वर्षों तक छोड़ दिया हो।
संलिप्तता (Adultery): यदि एक पक्ष ने विवाहेतर संबंध स्थापित किया हो।
मानसिक रोग (Mental Illness): यदि एक व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार हो और उसका इलाज संभव नहीं हो।
निर्वाह की असमर्थता (Incurable disease): यदि किसी एक पक्ष को असाध्य बीमारी हो।
अशक्ति (Impotency): यदि किसी एक पक्ष के पास शारीरिक रूप से संतान उत्पन्न करने की क्षमता न हो।
2. आपसी सहमति से तलाक (Section 13B)
धारा 13B के तहत, यदि पति और पत्नी दोनों एक-दूसरे से सहमति से तलाक लेना चाहते हैं, तो उन्हें एक साथ परिवार न्यायालय में आवेदन करना पड़ता है। इस प्रक्रिया के तहत, दोनों पक्षों को कम से कम 6 महीने का समय दिया जाता है, ताकि वे तलाक पर विचार कर सकें और इसे अंतिम रूप से स्वीकार कर सकें।
3. तलाक के लिए अदालत में आवेदन
यदि किसी पक्ष को तलाक की आवश्यकता होती है, तो उसे परिवार न्यायालय में आवेदन करना होता है। परिवार न्यायालय दोनों पक्षों के बीच समझौता करने की कोशिश करता है और यदि यह संभव नहीं होता, तो अदालत अपने फैसले पर पहुँचती है।
4. संपत्ति और बच्चों की देखभाल
तलाक के मामलों में संपत्ति का वितरण और बच्चों की कस्टडी पर भी अदालत फैसला करती है। अदालत इस पर विचार करती है कि बच्चों के सर्वोत्तम हित में क्या होगा और संपत्ति के संबंध में दोनों पक्षों के अधिकारों का निर्धारण करती है।
5. तलाक के बाद के कानूनी अधिकार
तलाक के बाद, अगर पत्नी को तलाक के दौरान या उसके बाद किसी प्रकार की आर्थिक सहायता की आवश्यकता होती है, तो वह धारा 25 के तहत maintenance (भरण-पोषण) के लिए आवेदन कर सकती है।
इसके अलावा, तलाक के बाद साक्षात्कार और पुनर्विवाह के प्रावधान भी होते हैं, जो पति-पत्नी के अधिकारों को सुरक्षित रखते हैं।
6. कानूनी प्रक्रिया और लंबाई
तलाक के मामलों में विधिक प्रक्रिया लंबी हो सकती है, विशेष रूप से यदि विवाद अधिक हो। अदालत के सामने दोनों पक्षों को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होती है, और सभी तथ्यों और साक्ष्यों का विचार करके न्यायिक आदेश दिया जाता है।
निष्कर्ष:
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 तलाक के मामलों में एक स्पष्ट कानूनी ढांचा प्रदान करता है। यह एक प्रक्रिया है जिसके तहत तलाक, संपत्ति का वितरण, बच्चों की कस्टडी, और भरण-पोषण जैसे मुद्दों का समाधान किया जाता है। धारा 13 और 13B में तलाक के कारण और आपसी सहमति से तलाक के प्रावधान शामिल हैं, जिससे यह कानून हिंदू समुदाय के लोगों के विवाह जीवन के समापन और संबंधित विवादों को सुलझाने में मदद करता है।