हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) के तहत विवाह की वैधता के लिए कुछ शर्तें निर्धारित की गई हैं। ये शर्तें इस अधिनियम की धारा 5 (Section 5) में वर्णित हैं। इस अधिनियम के अनुसार, हिंदू विवाह तभी मान्य होगा जब निम्नलिखित शर्तों का पालन किया गया हो:
1. दोनो पक्षों का हिंदू होना
विवाह के लिए दोनों पक्ष हिंदू धर्म के अनुयायी होने चाहिए। इसमें बौद्ध, जैन और सिख भी शामिल हैं।
2. विवाह के समय दोनों पक्षों का वैध रूप से विवाह करने योग्य होना
दिमागी स्थिति: दोनों पक्ष मानसिक रूप से स्वस्थ होने चाहिए।
सहमति: विवाह के लिए दोनों पक्षों की सहमति होनी चाहिए।
दिमागी रोग या दौरे (Epilepsy): किसी भी पक्ष को ऐसा मानसिक विकार नहीं होना चाहिए जिससे वे विवाह संबंधी जिम्मेदारियां न निभा सकें।
3. आयु की शर्त
पुरुष की आयु: कम से कम 21 वर्ष होनी चाहिए।
महिला की आयु: कम से कम 18 वर्ष होनी चाहिए।
4. नजदीकी संबंधों में विवाह वर्जित है
किसी भी पक्ष का विवाह सगोत्रीय संबंध (Sapinda relationship) या नजदीकी रिश्तेदार (Prohibited degree of relationship) में नहीं होना चाहिए।
5. पहला विवाह समाप्त होना चाहिए (एकविवाहिता)
यदि किसी पक्ष का पहले से विवाह हुआ है, तो वह समाप्त होना चाहिए।
पहले विवाह के जीवित रहते हुए दूसरा विवाह करना अवैध माना जाएगा।
6. विवाह की रस्में (Customary Rites)
विवाह का संपन्न होना वैध तभी होगा जब इसे धर्म और परंपराओं के अनुसार संपन्न किया जाए।
शास्त्रीय मान्यता के अनुसार, “सप्तपदी” (सात फेरे) विवाह को पूर्ण करता है।
संबंधित प्रावधान
यदि इन शर्तों का पालन नहीं किया जाता, तो विवाह को अवैध (Void) या शून्य (Voidable) घोषित किया जा सकता है।
यदि आपको इस अधिनियम की किसी धारा पर विशेष जानकारी चाहिए, तो बताइए।
हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 भारत में हिंदू विवाह से संबंधित कानूनों को नियंत्रित करता है। इसमें विवाह के नियम, प्रक्रियाएं, और इसे वैध बनाने के लिए आवश्यक शर्तों को निर्धारित किया गया है। आपके संदर्भित सेक्शन निम्नलिखित हैं:
धारा 5: हिंदू विवाह के लिए शर्तें
यह धारा हिंदू विवाह के लिए बुनियादी शर्तों को निर्धारित करती है।
विवाह तभी वैध होगा जब:
1. दोनों पक्ष हिंदू हों – दोनों व्यक्ति हिंदू धर्म के अनुयायी हों।
2. एक ही समय पर एक विवाह – किसी भी पक्ष का पहले से वैध विवाह न हो (पोलिगैमी प्रतिबंधित है)।
3. दिमागी क्षमता – दोनों पक्ष मानसिक रूप से सक्षम हों और विवाह की जिम्मेदारियों को समझने में सक्षम हों।
4. वैवाहिक उम्र – दुल्हन की उम्र कम से कम 18 वर्ष और दूल्हे की 21 वर्ष हो।
5. निषिद्ध संबंध – विवाह निषिद्ध डिग्री के रिश्तेदारों में नहीं होना चाहिए, जब तक कि स्थानीय रीति-रिवाज इसकी अनुमति न दें।
6. सपिंडा संबंध – विवाह सपिंडा संबंध (निकट रक्त संबंध) में नहीं होना चाहिए।
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धारा 6: संरक्षक की सहमति
यह धारा मुख्य रूप से ऐसे मामलों में लागू होती है जब विवाह में शामिल व्यक्ति अवयस्क (अल्पवयस्क) हो। हालांकि, 1978 में बाल विवाह निषेध अधिनियम लागू होने के बाद, यह प्रावधान व्यावहारिक रूप से अप्रचलित हो गया है।
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धारा 7: हिंदू विवाह के लिए विधियां
यह धारा हिंदू विवाह की धार्मिक विधियों को मान्यता देती है।
विवाह संस्कार हिंदू परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार होना चाहिए।
“सप्तपदी” (अग्नि के चारों ओर सात फेरे) सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। सप्तपदी पूरी होने के बाद ही विवाह वैध होता है।
यदि किसी विशेष समुदाय में कोई अन्य विधि प्रचलित है, तो वह विधि भी मान्य होगी।
ये धाराएं हिंदू विवाह की वैधता सुनिश्चित करती हैं और उनके कानूनन प्रावधानों को स्पष्ट करती हैं।