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हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 दत्तक ग्रहण की शर्त व प्रावधान

Posted on January 9, 2025 By soni.vidya22@gmail.com No Comments on हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 दत्तक ग्रहण की शर्त व प्रावधान

हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956

यह अधिनियम हिंदू व्यक्तिगत कानून के तहत दत्तक ग्रहण (Adoption) और भरण-पोषण (Maintenance) से संबंधित प्रावधानों को परिभाषित करता है। यह भारत में लागू किया गया था और यह मुख्य रूप से हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख समुदायों पर लागू होता है।

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भाग 1: दत्तक ग्रहण (Adoption)

महत्वपूर्ण प्रावधान

1. धारा 1:

यह अधिनियम केवल हिंदू, बौद्ध, जैन और सिखों पर लागू होता है।

मुस्लिम, ईसाई और पारसी इस अधिनियम के दायरे में नहीं आते।

2. धारा 6: दत्तक ग्रहण की शर्तें

दत्तक ग्रहण वैध होने के लिए निम्न शर्तें आवश्यक हैं:

(i) दत्तक लेने वाले को अधिकार होना चाहिए।

(ii) दत्तक दिया जाने वाला व्यक्ति सक्षम हो।

(iii) उचित प्रक्रिया का पालन किया जाए।

3. धारा 7: विवाहित पुरुष द्वारा दत्तक ग्रहण

विवाहित पुरुष अपनी पत्नी की सहमति से ही दत्तक ले सकता है।

4. धारा 8: विवाहित महिला द्वारा दत्तक ग्रहण

विवाहित महिला दत्तक नहीं ले सकती जब तक उसका पति जीवित न हो या असमर्थ न हो।

5. धारा 9: दत्तक देने का अधिकार

बच्चे का दत्तक देना केवल माता-पिता या अभिभावक का अधिकार है।

6. धारा 10: दत्तक योग्य बच्चे

बच्चा हिंदू होना चाहिए।

लड़के या लड़की की उम्र 15 वर्ष से कम होनी चाहिए।

बच्चा मानसिक रूप से असक्षम न हो।

7. धारा 11: दत्तक की अन्य शर्तें

पुत्र गोद लेने पर दत्तककर्ता के पास पहले से पुत्र न हो।

पुत्री गोद लेने पर दत्तककर्ता के पास पहले से पुत्री न हो।

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भाग 2: भरण-पोषण (Maintenance)

महत्वपूर्ण प्रावधान

1. धारा 18: पत्नी का भरण-पोषण

विवाहित हिंदू पत्नी अपने पति से भरण-पोषण की मांग कर सकती है, यदि:

(i) पति उसे छोड़ दे।

(ii) पति किसी और महिला के साथ संबंध रखे।

(iii) पति क्रूरता करे।

2. धारा 19: विधवा का भरण-पोषण

विधवा अपने ससुराल वालों से भरण-पोषण की मांग कर सकती है।

3. धारा 20: बच्चों और वृद्ध माता-पिता का भरण-पोषण

हिंदू बच्चों पर उनके माता-पिता का भरण-पोषण करना अनिवार्य है।

4. धारा 22: भरण-पोषण का उत्तरदायित्व

किसी व्यक्ति के मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति का उत्तराधिकारी भरण-पोषण का उत्तरदायी होगा।

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महत्वपूर्ण केस लॉ (Case Laws)

1. गौरी शंकर बनाम नर्मदा बाई (1977)

यह निर्णय स्पष्ट करता है कि पत्नी को भरण-पोषण पाने का अधिकार है, चाहे पति के पास आय का साधन हो या न हो।

2. विमला देवी बनाम जॉनसन (1980)

इस मामले में यह तय किया गया कि भरण-पोषण का अधिकार केवल पति-पत्नी के संबंध पर निर्भर करता है।

3. लक्ष्मी कांत पांडे बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (1984)

इस मामले में भारतीय बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया को विनियमित करने के लिए दिशानिर्देश दिए गए।

4. धीरेंद्र कुमार बनाम सुदर्शन (1988)

दत्तक की शर्तों और प्रक्रियाओं के संदर्भ में यह निर्णय अहम था।

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महत्वपूर्ण बिंदु

1. धर्म का प्रभाव: यह अधिनियम हिंदू धर्म के अनुयायियों पर लागू होता है।

2. महिला के अधिकार: महिला को दत्तक और भरण-पोषण में विशेष अधिकार प्रदान किए गए हैं।

3. बच्चों का अधिकार: बच्चों को दत्तक और भरण-पोषण में प्रमुखता दी गई है।

4. न्यायालय का दृष्टिकोण: न्यायालय ने समय-समय पर इसके प्रावधानों को व्याख्यायित किया है।

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