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सपिंड नातेदारी । प्रतिशिद्ध नातेदारी

Posted on January 9, 2025 By soni.vidya22@gmail.com No Comments on सपिंड नातेदारी । प्रतिशिद्ध नातेदारी

हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 में विवाह के संबंध में कुछ प्रतिबंध लगाए गए हैं ताकि सामाजिक और धार्मिक परंपराओं का पालन किया जा सके। इनमें से एक मुख्य प्रावधान है सपिंड नातेदारी और प्रतिषेध नातेदारी। आइए इन्हें समझते हैं:

1. सपिंड नातेदारी:

सपिंड का अर्थ है “समान पिंडदान”। हिंदू धर्म में यह विचार है कि कुछ पीढ़ियों तक एक ही पूर्वज से संबंध रखने वाले व्यक्तियों को “सपिंड” कहा जाता है।

हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के अनुसार, कोई भी व्यक्ति सपिंड संबंध के भीतर विवाह नहीं कर सकता।

सपिंड सीमा:

लड़के के लिए: पिता की तरफ से पाँचवीं पीढ़ी और माता की तरफ से तीसरी पीढ़ी।

लड़की के लिए: पिता की तरफ से पाँचवीं पीढ़ी और माता की तरफ से तीसरी पीढ़ी।

इन सीमाओं के भीतर संबंध रखने वाले व्यक्ति आपस में विवाह नहीं कर सकते।

2. प्रतिषेध नातेदारी:

प्रतिषेध नातेदारी का तात्पर्य उन रिश्तों से है जो विवाह के लिए निषिद्ध हैं।

हिंदू मैरिज एक्ट के तहत यदि दो व्यक्ति निम्नलिखित श्रेणियों में आते हैं, तो वे विवाह नहीं कर सकते:

यदि वे भाई-बहन हैं (चाहे सगे, सौतेले, या दत्तक हों)।

यदि वे चाचा-भतीजी, मामा-भांजी, फूफा-साली आदि जैसे रिश्ते में हैं।

अगर वे नातेदारी के आधार पर सगोत्रीय संबंध रखते हैं, तो गोत्र परंपरा के अनुसार उनका विवाह निषिद्ध है।

अपवाद:

यदि स्थानीय या सांस्कृतिक परंपराओं में इन प्रतिबंधों की छूट हो और विवाह वैध हो, तो यह अपवाद के रूप में माना जा सकता है।

उद्देश्य:

इन प्रतिबंधों का उद्देश्य जैविक दोष (genetic defects) को रोकना और सामाजिक तथा पारिवारिक संबंधों को संतुलित रखना है।

अगर किसी मामले में यह समझना हो कि कोई संबंध सपिंड या प्रतिषेध नातेदारी के अंतर्गत आता है या नहीं, तो परिवार के वंशवृक्ष (family tree) और परंपराओं का अध्ययन करना आवश्यक होता है।

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