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शून्य विवाह और शून्यकरणीय विवाह क्या है |

Posted on January 9, 2025 By soni.vidya22@gmail.com No Comments on शून्य विवाह और शून्यकरणीय विवाह क्या है |

हिंदू मरीज एक्ट शून्य और शुन्यक्रणीय विवाह का संबंध भारतीय विवाह कानून से है, विशेष रूप से हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 से।

1. शून्य विवाह (Void Marriage):

यह विवाह हिंदू विवाह अधिनियम के तहत शून्य (invalid) माना जाता है और यह विवाह कभी अस्तित्व में नहीं होता।

इस प्रकार के विवाह की कोई कानूनी मान्यता नहीं होती है, और इसे अनधिकृत या अवैध विवाह माना जाता है।

धारा 11 के अनुसार, अगर विवाह में निम्नलिखित दोष हैं तो वह शून्य होगा:

अगर विवाह करने वाले व्यक्तियों में से कोई भी पहले से जीवित विवाह में बंधा हुआ हो और वह अपने पहले विवाह को समाप्त किए बिना दूसरा विवाह करता है (धारा 5(1) का उल्लंघन)।

अगर विवाह करने वाले व्यक्ति रक्त संबंधी (आधिकारिक रूप से वर्जित) हैं, जैसे भाई-बहन, माता-पिता और संतान (धारा 5(4) का उल्लंघन)।

यदि विवाह के लिए मानसिक रूप से सक्षम या स्वतंत्र सहमति नहीं है।

2. शुन्यक्रणीय विवाह (Voidable Marriage):

इस प्रकार के विवाह को प्रारंभ में वैध माना जाता है, लेकिन कुछ विशेष कारणों से इसे शुन्य (invalid) किया जा सकता है। यह विवाह कानूनी रूप से अमान्य होने से पहले रद्द किया जा सकता है।

धारा 12 के अनुसार, यह विवाह तब तक मान्य रहेगा जब तक इसे संबंधित पक्ष द्वारा रद्द नहीं किया जाता।

अगर विवाह के समय विवाह के अनुशासन में कोई निम्नलिखित कारण होते हैं, तो इसे शुन्यक्रणीय माना जाता है:

यदि विवाह में शामिल व्यक्ति में से किसी एक ने अपनी मानसिक स्थिति की ग़लत जानकारी दी हो।

यदि विवाह से पहले धोखा या बलात्कार हुआ हो।

अगर विवाह में शामिल कोई व्यक्ति रजामंदी से शामिल नहीं हुआ हो।

संबंधित प्रमुख केस:

हरभजन कौर v. रंजन कुमार (2006) – इस मामले में शून्य विवाह और शून्यक्रणीय विवाह के बीच अंतर पर निर्णय लिया गया।

ब्रह्म देव व. शांति देवी (1968) – शून्य विवाह को लेकर यह केस उल्लेखनीय है, जहां धारा 11 के तहत विवाह की शून्यता पर फैसला किया गया।

इन दोनों प्रकार के विवाहों का मुख्य अंतर इस बात पर निर्भर करता है कि क्या विवाह को कानून द्वारा रद्द किया जा सकता है (शून्यक्रणीय) या क्या वह कभी अस्तित्व में नहीं था (शून्य)।

शून्य विवाह (Void Marriage) और शून्यकरणीय विवाह (Voidable Marriage), दोनों ही कानूनी रूप से विवाह के प्रकार हैं, लेकिन इनकी कानूनी स्थिति और प्रभाव अलग होते हैं।

1. शून्य विवाह (Void Marriage):

शून्य विवाह वह विवाह होता है जो कानूनी दृष्टि से कभी अस्तित्व में नहीं होता। इसका मतलब है कि इस विवाह को कभी वैध नहीं माना जाता।

भारतीय हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) के तहत शून्य विवाह के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं:

यदि कोई व्यक्ति पहले से विवाहित है और उसकी दूसरी शादी बिना पहली शादी को समाप्त किए जाती है (धारा 5(1), यदि पति या पत्नी जीवित हो और उनसे कानूनी रूप से विवाह नहीं हुआ हो)।

यदि विवाह के समय पति या पत्नी में से कोई मानसिक रूप से अक्षम है।

यदि विवाह में किसी पक्ष की सहमति बलात्कारी तरीके से ली गई हो।

शून्य विवाह से उत्पन्न बच्चों की स्थिति:

ऐसे विवाह से उत्पन्न बच्चे कानूनी रूप से अवैध होते हैं, लेकिन वे मूल अधिकारों के तहत संरक्षित होते हैं। उन्हें वैध बच्चे की तरह अधिकार मिलते हैं, जैसे कि संपत्ति का अधिकार।

2. शून्यकरणीय विवाह (Voidable Marriage):

शून्यकरणीय विवाह वह विवाह है जिसे कानूनी रूप से वैध माना जाता है, लेकिन यदि किसी कारण से, जैसे कि विवाह में धोखा, दबाव, या मानसिक स्थिति, इसे एक पक्ष द्वारा रद्द (annul) किया जा सकता है।

हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 12 के तहत शून्यकरणीय विवाह के कारण निम्नलिखित हो सकते हैं:

यदि विवाह में किसी पक्ष की सहमति धोखे, धोखाधड़ी, दबाव, या मानसिक विकृति के कारण ली गई हो।

यदि विवाह में किसी व्यक्ति ने अपनी पक्ष की असमर्थता का खुलासा नहीं किया हो।

शून्यकरणीय विवाह से उत्पन्न बच्चों की स्थिति:

शून्यकरणीय विवाह से उत्पन्न बच्चे सामान्य रूप से कानूनी रूप से वैध होते हैं, और उन्हें परिवार और संपत्ति के अधिकार मिलते हैं, यदि विवाह बाद में रद्द किया जाए तो भी।

कानूनी दृष्टिकोण:

भारतीय हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 में इन दोनों प्रकार के विवाहों से संबंधित प्रावधान होते हैं।

धारा 16 (Hindu Marriage Act, 1955) में कहा गया है कि शून्य या शून्यकरणीय विवाह से उत्पन्न बच्चे किसी भी स्थिति में अवैध नहीं माने जाएंगे और वे वैध अधिकारों का दावा कर सकते हैं, जैसे संपत्ति का अधिकार और पिता से संबंधित अन्य कानूनी अधिकार।

मामला उदाहरण (Case Law):

K. K. Verma v. Union of India (1955): इस मामले में यह स्पष्ट किया गया था कि शून्य विवाह से उत्पन्न बच्चे को सम्पत्ति का अधिकार मिलेगा।

G. R. Gohil v. D. K. Kothari (1973): इस मामले में शून्यकरणीय विवाह से उत्पन्न बच्चे की स्थिति पर चर्चा की गई थी, और अदालत ने कहा कि यदि विवाह कानूनी रूप से रद्द किया जाता है, तो भी बच्चे को संपत्ति और अन्य अधिकार मिलेंगे।

इस प्रकार, शून्य और शून्यकरणीय विवाह से उत्पन्न बच्चों की कानूनी स्थिति मजबूत होती है, और उनके अधिकारों की रक्षा की जाती है।

शून्यकरणीय विवाह 12 प्रावधान का बृहद व्याख्या हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 का धारा 12 (Section 12) उस समय की स्थिति को संदर्भित करता है जब विवाह को “voidable” (रद्द करने योग्य) माना जाता है। इसका मतलब यह है कि कुछ परिस्थितियों में विवाह कानूनी रूप से वैध हो सकता है, लेकिन किसी पक्ष द्वारा अदालत में दावा किए जाने पर उसे रद्द किया जा सकता है। धारा 12 में उल्लिखित प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

1. मन से सहमति न होना (Lack of Consent): अगर किसी व्यक्ति ने विवाह में बिना अपनी स्वतंत्र इच्छा के सम्मिलित किया हो (जैसे दबाव, धोखाधड़ी या भय के कारण), तो वह विवाह “voidable” हो सकता है।

2. मानसिक विकार (Mental Illness): अगर कोई व्यक्ति मानसिक बीमारी से ग्रस्त हो और वह विवाह के समय मानसिक रूप से स्वस्थ न हो, तो उसके द्वारा किया गया विवाह voidable हो सकता है।

3. विवाह का पूरा न होना (Marriage Not Consummated): यदि विवाह के बाद पति-पत्नी में से एक ने शारीरिक संबंध नहीं बनाए (यानि विवाह का “consummation” नहीं हुआ), तो दूसरा पक्ष इस आधार पर विवाह को रद्द कर सकता है।

4. अशक्ति (Impotence): यदि विवाह के समय कोई पक्ष शारीरिक रूप से असमर्थ (impotent) है और विवाह के बाद यह समस्या स्पष्ट हो जाती है, तो दूसरा पक्ष इस आधार पर विवाह को रद्द करने की मांग कर सकता है।

इन स्थितियों में, प्रभावित पक्ष अदालत में आवेदन कर सकता है और यदि अदालत विवाह को रद्द करने के पक्ष में निर्णय देती है, तो वह विवाह voidable हो जाएगा।

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