शिया और सुन्नी इस्लाम धर्म के दो प्रमुख संप्रदाय हैं। इन दोनों संप्रदायों की उत्पत्ति पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की मृत्यु के बाद उनकी उत्तराधिकार (ख़िलाफ़त) के प्रश्न पर हुई थी। इनके बीच मुख्य अंतर धार्मिक नेतृत्व और व्याख्या से संबंधित है।
सुन्नी (Sunni)
सुन्नी इस्लाम धर्म के सबसे बड़े अनुयायी समूह हैं, और “सुन्नी” का अर्थ है “सुन्नत को मानने वाले”।
सुन्नियों का मानना है कि पैगंबर मोहम्मद की मृत्यु के बाद ख़लीफा (नेता) का चुनाव समुदाय (उम्मा) की सहमति से होना चाहिए।
उनके पहले चार ख़लीफा (अबू बक्र, उमर, उस्मान और अली) को “राशिदून ख़लीफा” कहा जाता है।
सुन्नी मुस्लिमों की धार्मिक प्रथाएँ और विश्वास चार प्रमुख इस्लामी न्यायशास्त्र (फ़िक़्ह) स्कूलों पर आधारित हैं: हनफ़ी, मालिकी, शाफ़ी और हंबली।
शिया (Shia)
शिया इस्लाम धर्म का दूसरा सबसे बड़ा समूह है। “शिया” शब्द का अर्थ है “अली के समर्थक”।
शियाओं का मानना है कि पैगंबर मोहम्मद के उत्तराधिकारी उनके चचेरे भाई और दामाद अली इब्न अबी तालिब होने चाहिए थे, क्योंकि ख़िलाफ़त ईश्वर द्वारा निर्धारित और पैगंबर के परिवार (अहले-बैत) तक सीमित होनी चाहिए।
शिया मुसलमान इमामत में विश्वास करते हैं, यानी वे इमाम (अध्यात्मिक नेता) को अल्लाह द्वारा नियुक्त मानते हैं।
शिया समुदाय में सबसे बड़ा समूह इमामिया (बारह इमाम) है, जो 12 इमामों को मानता है। इसके अलावा इस्माइली और ज़ैदी जैसे अन्य शिया समूह भी हैं।
मुख्य अंतर
इन दोनों समूहों के बीच ऐतिहासिक और राजनीतिक कारणों से मतभेद और संघर्ष भी हुए हैं, लेकिन कई जगहों पर ये समुदाय साथ मिलकर भी रहते हैं।