हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 9 (Section 9) का संबंध वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना (Restitution of Conjugal Rights) से है।
धारा 9 का मुख्य उद्देश्य:
अगर पति या पत्नी, बिना किसी उचित कारण के, अपने जीवनसाथी से अलग रह रहे हैं, तो दूसरा पक्ष अदालत से अनुरोध कर सकता है कि उनके वैवाहिक अधिकारों को बहाल किया जाए।
धारा 9 का विवरण:
1. प्रावधान:
यदि कोई पति या पत्नी, बिना किसी वैध कारण के, अपने जीवनसाथी के साथ सह-जीवन (cohabitation) से इनकार करता है, तो प्रभावित पक्ष अदालत में एक याचिका दायर कर सकता है।
2. शर्तें:
आवेदक को यह साबित करना होगा कि वह खुद वैवाहिक जिम्मेदारियों को निभाने के लिए तैयार है।
अदालत तब याचिका स्वीकार करेगी, जब यह साबित हो कि अलग रहने का कोई “वैध कारण” नहीं है।
3. अदालत का आदेश:
अदालत, यदि संतुष्ट हो जाती है कि याचिका उचित है, तो वह “वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना” का आदेश दे सकती है। इसका मतलब है कि दोनों को एक साथ रहने के लिए बाध्य किया जाएगा।
वैध कारणों के उदाहरण:
अलग रहने के वैध कारणों में शामिल हो सकते हैं:
क्रूरता (Cruelty)
व्यभिचार (Adultery)
गंभीर बीमारी
वैवाहिक कर्तव्यों को निभाने में विफलता
महत्वपूर्ण न्यायिक पहलू:
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने कई मामलों में यह स्पष्ट किया है कि धारा 9 का उपयोग किसी भी प्रकार की जबरदस्ती या व्यक्तिगत स्वतंत्रता के हनन के लिए नहीं होना चाहिए।
सरोज रानी बनाम सुधर्शन कुमार चड्ढा (1984) केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 9 का उद्देश्य शादी को बचाना और दंपत्ति को फिर से एकजुट करना है।
संबंधित चिंताएं:
कुछ आलोचकों का मानना है कि यह धारा व्यक्ति की “Right to Privacy” का उल्लंघन कर सकती है, जो भारतीय संविधान के तहत संरक्षित है।
अगर आपको इस धारा पर विस्तार से कानूनी सहायता चाहिए, तो एक वकील से संपर्क करें।
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) की धारा 9 (Section 9) “वैवाहिक अधिकारों की पुनः स्थापना” (Restitution of Conjugal Rights) से संबंधित है। इस धारा के अंतर्गत यदि एक पति या पत्नी बिना किसी उचित कारण के अपने साथी के साथ सहवास करने से इनकार करता/करती है या अलग रहता/रहती है, तो पीड़ित पक्ष इस धारा के तहत अदालत में याचिका दायर कर सकता/सकती है।
धारा 9 से संबंधित महत्वपूर्ण केस कानून:
1. Sarla Mudgal v. Union of India (1995)
इस केस में यह स्पष्ट किया गया कि हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों का उद्देश्य वैवाहिक संबंधों को मजबूत करना है, और धारा 9 पति-पत्नी के बीच सहवास की बहाली सुनिश्चित करने का प्रयास करती है।
2. T. Sareetha v. T. Venkatasubbaiah (1983)
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 9 संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करती है, क्योंकि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता के अधिकार को प्रभावित करती है। हालांकि, बाद में यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज कर दिया गया।
3. Harvinder Kaur v. Harmander Singh (1983)
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 9 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के खिलाफ नहीं है। कोर्ट ने इसे वैवाहिक रिश्तों को बचाने का एक साधन माना।
4. Saroj Rani v. Sudarshan Kumar Chadha (1984)
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में धारा 9 को वैध ठहराया और कहा कि यह पति-पत्नी के बीच संबंधों को सुधारने और उन्हें एक साथ लाने का प्रयास करता है।
प्रावधान का उद्देश्य:
धारा 9 का उद्देश्य पति-पत्नी के बीच संबंध सुधारना और उनके वैवाहिक जीवन को स्थिर बनाना है।
अगर किसी पक्ष को अपने साथी के अलगाव का उचित कारण नहीं मिलता, तो वह इस धारा के तहत याचिका दायर कर सकता है।
यदि आप किसी विशेष मामले के बारे में जानकारी चाहते हैं या किसी केस का विस्तृत विवरण चाहिए, तो कृपया बताएं।