मुस्लिम विवाह में शिया और सुन्नी समुदायों के बीच अंतर होते हैं, विशेष रूप से विवाह के प्रकारों और उनके नियमों में।
शिया मुस्लिम विवाह के प्रकार
1. स्थायी विवाह (निकाह मुस्ताकिल)
यह शिया और सुन्नी दोनों समुदायों में समान रूप से प्रचलित है।
स्थायी रूप से पति-पत्नी का संबंध स्थापित किया जाता है।
मेहर तय किया जाता है।
दोनों पक्षों की सहमति जरूरी होती है।
2. मुत’अह विवाह (अस्थायी विवाह)
यह शिया समुदाय में अधिक प्रचलित है।
यह एक अस्थायी विवाह होता है जो एक निश्चित समय के लिए किया जाता है।
इसमें समय और मेहर पहले से तय किया जाता है।
विवाह की अवधि पूरी होने के बाद यह स्वतः समाप्त हो जाता है।
इस विवाह में पति-पत्नी के अधिकार और कर्तव्य सीमित होते हैं।
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सुन्नी मुस्लिम विवाह के प्रकार
1. स्थायी विवाह (निकाह मुस्ताकिल)
यह सुन्नी समुदाय में सबसे आम और प्रचलित प्रकार का विवाह है।
इसमें दोनों पक्ष स्थायी संबंध के लिए सहमत होते हैं।
मेहर, गवाहों और इजाब-ओ-कबूल (सहमति) की प्रक्रिया के तहत विवाह संपन्न होता है।
2. मिस्यार विवाह
यह सुन्नी समुदाय में प्रचलित है।
इसमें पति-पत्नी साथ रहने के लिए बाध्य नहीं होते।
यह सामाजिक और आर्थिक जरूरतों को ध्यान में रखकर किया जाता है।
इसमें पत्नी कुछ अधिकारों को छोड़ने के लिए तैयार हो सकती है, जैसे वित्तीय सहायता या पति के साथ रहना।
3. निकाह हलाला
यह सुन्नी समुदाय में प्रचलित है।
यदि कोई पति अपनी पत्नी को तीन तलाक दे देता है, तो पत्नी को पहले किसी अन्य व्यक्ति से विवाह करना होगा और फिर तलाक या मृत्यु के बाद वह अपने पहले पति से पुनः विवाह कर सकती है।
यह विवादास्पद है और इसे विभिन्न मुस्लिम विचारधाराओं में भिन्न रूप से देखा जाता है।
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मुख्य अंतर
1. मुत’अह विवाह:
यह शिया समुदाय में मान्य है।
सुन्नी समुदाय इसे अवैध और अस्वीकार्य मानता है।
2. मिस्यार विवाह:
यह सुन्नी समुदाय में स्वीकार्य है।
शिया समुदाय इसे मान्यता नहीं देता।
3. विवाह की प्रक्रिया:
शिया निकाह में गवाहों की उपस्थिति अनिवार्य नहीं होती।
सुन्नी निकाह में गवाहों की उपस्थिति आवश्यक है।
4. मेहर का प्रावधान:
दोनों समुदायों में मेहर अनिवार्य है, लेकिन शिया विवाह में इसे अधिक विस्तृत रूप से तय किया जाता है।
दोनों समुदाय विवाह को एक अनुबंध मानते हैं, लेकिन उनके प्रकार और नियम धार्मिक विचारधाराओं पर आधारित होते हैं।