मुस्लिम विवाह और मेहर (दहेज):
मुस्लिम विवाह, जिसे “निकाह” कहा जाता है, एक पवित्र अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) है। इसमें दूल्हा और दुल्हन की सहमति से शादी संपन्न होती है। मेहर इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
मेहर क्या है?
मेहर वह धनराशि या संपत्ति है जो दूल्हा शादी के समय या शादी के बाद अपनी दुल्हन को देता है। यह इस्लामिक कानून के अनुसार पत्नी का अधिकार है और उसका सुरक्षा कवच माना जाता है।
मेहर दूल्हा और दुल्हन के बीच एक वचन के रूप में तय किया जाता है।
यह पत्नी की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
इसे शादी के समय या बाद में कभी भी दिया जा सकता है।
मेहर के प्रकार:
मेहर मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है:
1. मुअज्जल मेहर (तत्काल मेहर):
यह वह मेहर है जो शादी के समय या निकाह के तुरंत बाद दिया जाता है।
2. मुअज्जल मेहर (स्थगित मेहर):
यह वह मेहर है जो किसी विशेष समय या परिस्थिति में दिया जाता है, जैसे तलाक, पत्नी की मांग, या दूल्हे की मृत्यु के समय।
विवाह में मेहर की आवश्यकता:
1. शर्त:
मुस्लिम विवाह में मेहर अनिवार्य है। बिना मेहर के निकाह अधूरा माना जाता है।
2. राशि तय करना:
मेहर की राशि या संपत्ति का निर्धारण दूल्हा और दुल्हन या उनके परिवार की सहमति से किया जाता है। इसकी कोई न्यूनतम या अधिकतम सीमा नहीं होती।
3. कानूनी और धार्मिक अधिकार:
मेहर पत्नी का धार्मिक और कानूनी अधिकार है। पत्नी इसे कभी भी मांग सकती है।
महत्व:
मेहर पति और पत्नी के बीच सम्मान और सुरक्षा का प्रतीक है।
यह पत्नी को आर्थिक स्वतंत्रता और विवाह में उसका अधिकार देता है।
मेहर शादी के अनुबंध को वैध बनाता है।
निष्कर्ष:
मेहर मुस्लिम विवाह की एक आवश्यक शर्त है। यह पति द्वारा पत्नी को दिया जाने वाला सम्मान और सुरक्षा है, जो उसे विवाह के अनुबंध में विश्वास और अधिकार देता है।
सुन्नी संप्रदाय में मैहर निकाह में न होने पर विवाह को इरेगुलर मैरिज अर्थात विवाह फासिद माना जाता है।