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मुस्लिम विवाह और तलाक से संबंधित प्रकार और कानूनी उपबंध भारतीय कानून और शरिया कानून

Posted on January 15, 2025January 15, 2025 By soni.vidya22@gmail.com No Comments on मुस्लिम विवाह और तलाक से संबंधित प्रकार और कानूनी उपबंध भारतीय कानून और शरिया कानून

मुस्लिम विवाह और तलाक से संबंधित प्रकार और कानूनी उपबंध भारतीय कानून और शरिया कानून दोनों के अंतर्गत आते हैं। यहाँ मुस्लिम तलाक के प्रमुख प्रकार और संबंधित कानूनी प्रावधानों की चर्चा की गई है:

मुस्लिम तलाक के प्रकार

मुस्लिम कानून के अंतर्गत तलाक के निम्नलिखित प्रकार हैं:

1. पति द्वारा तलाक (तलाक-ए-पुरुष)

तलाक-ए-अहसन:

यह सबसे उचित और स्वीकृत तरीका माना जाता है।

इसमें पति एक बार तलाक बोलकर इद्दत (महिला की प्रतीक्षा अवधि) पूरी होने तक पत्नी के साथ कोई संबंध नहीं रखता।

इद्दत अवधि में पति-पत्नी के बीच सुलह का अवसर होता है।

तलाक-ए-हसन:

इसमें पति तीन बार अलग-अलग समय पर तलाक बोलता है।

तीन तलाक पूरे होने पर तलाक मान्य होता है।

तलाक-ए-बिद्दत (तीन तलाक):

पति द्वारा एक ही समय में तीन बार तलाक कहने की प्रक्रिया।

भारत में मुस्लिम महिला (विवाह संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत इसे गैरकानूनी और दंडनीय घोषित कर दिया गया है।

2. पत्नी द्वारा तलाक (खुला)

खुला:

पत्नी अपने पति से तलाक की मांग करती है और बदले में पति को मेहर या अन्य संपत्ति वापस कर देती है।

यह पति की सहमति से होता है।

तफवीज़ तलाक:

पति अपनी पत्नी को तलाक का अधिकार देता है।

यह विवाह अनुबंध (निकाहनामे) में पहले से दर्ज हो सकता है।

3. न्यायालय द्वारा तलाक (जुडिशियल तलाक)

अगर पति या पत्नी में से कोई एक तलाक के लिए सहमत न हो, तो न्यायालय से तलाक लिया जा सकता है।

मुस्लिम महिलाओं को डिसोल्यूशन ऑफ मुस्लिम मैरिज एक्ट, 1939 के तहत निम्न आधारों पर न्यायालय से तलाक का अधिकार है:

1. पति का गुम होना (चार वर्ष से अधिक)।

2. पति द्वारा पत्नी को भरण-पोषण न देना।

3. पति का मानसिक या शारीरिक रोगी होना।

4. पति की क्रूरता या अमानवीय व्यवहार।

5. पत्नी की इच्छा के बिना विवाह या अन्य अत्याचार।

4. आपसी सहमति से तलाक (मुबारात)

इसमें पति-पत्नी आपसी सहमति से अलग होते हैं।

इसमें कोई विवाद नहीं होता और तलाक तुरंत प्रभावी हो जाता है।

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कानूनी उपबंध

1. मुस्लिम महिला (विवाह संरक्षण) अधिनियम, 2019:

तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को गैरकानूनी करार दिया गया।

इसमें दोषी पति को तीन साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।

2. डिसोल्यूशन ऑफ मुस्लिम मैरिज एक्ट, 1939:

मुस्लिम महिलाओं को तलाक लेने के लिए विशेष आधार प्रदान करता है।

3. संविधान के अनुच्छेद 14 और 21:

मुस्लिम महिलाओं को समानता और जीवन के अधिकार की रक्षा प्रदान करता है।

तीन तलाक जैसे भेदभावपूर्ण प्रथाओं को समाप्त करने की दिशा में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय

1. शाह बानो केस (1985):

सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को भरण-पोषण का अधिकार दिया।

इस मामले ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा में अहम भूमिका निभाई।

2. शायरा बानो केस (2017):

सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को असंवैधानिक और गैरकानूनी घोषित किया।

यह निर्णय महिलाओं के अधिकारों और समानता की दृष्टि से ऐतिहासिक माना गया।

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निष्कर्ष

मुस्लिम तलाक के प्रकार विविध और शरिया कानून के अनुसार हैं, लेकिन भारतीय कानूनी व्यवस्था ने महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और समानता सुनिश्चित करने के लिए कई प्रगतिशील निर्णय और कानून बनाए हैं।

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