हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के तहत, एक रूढ़ि या प्रथा (custom or usage) को विधि (law) का बल प्राप्त होने के लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना आवश्यक है:
1. प्राचीनता (Antiquity):
प्रथा बहुत प्राचीन होनी चाहिए। इसका प्रयोग लंबे समय से हो रहा होना चाहिए।
इसे ऐसा माना जाए कि यह प्रथा एक समुदाय में पीढ़ियों से चली आ रही है।
2. सतत् पालन (Continuity):
यह प्रथा लगातार अपनाई जाती हो और इसका पालन बिना किसी बाधा या टूट-फूट के किया जा रहा हो।
3. उचितता (Reasonableness):
प्रथा न्यायसंगत और तर्कसंगत होनी चाहिए। यह किसी व्यक्ति या समुदाय के लिए हानिकारक या अनुचित नहीं होनी चाहिए।
4. कानूनी मान्यता (Legal Recognition):
यह प्रथा किसी कानून के विरुद्ध नहीं होनी चाहिए। हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 3 (a) के अनुसार, ऐसी प्रथा को “कानूनी मान्यता” दी जा सकती है, बशर्ते कि यह एक विशिष्ट समुदाय या वर्ग में प्रचलित हो और विधिक प्रक्रिया का पालन करे।
5. स्पष्टता (Definiteness):
प्रथा की प्रकृति और उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए। इसका पालन समुदाय के लोगों द्वारा समान रूप से किया जाना चाहिए।
हिंदू मैरिज एक्ट के तहत प्रथा का प्रभाव:
यदि कोई रूढ़ि या प्रथा सभी उपरोक्त शर्तों को पूरा करती है, तो उसे विधि के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।
उदाहरण के लिए, विवाह से संबंधित कुछ विशिष्ट रीति-रिवाज जो किसी समुदाय में मान्य हैं, उन्हें कानूनन वैध माना जा सकता है, जैसे कि सपिंडा संबंध से जुड़े अपवाद या विवाह की विशिष्ट विधियां।
सीमाएं:
कोई भी प्रथा, जो संविधान के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन करती हो, जैसे समानता का अधिकार या मानवाधिकार, उसे कानून मान्यता नहीं देगा।
हिंदू मैरिज एक्ट के अंतर्गत, प्रथा तभी मान्य होगी, जब वह धारा 5 और धारा 7 की शर्तों के विपरीत न हो।
इस प्रकार, किसी भी प्रथा को “विधि का बल” तभी मिलता है, जब वह समुदाय द्वारा सतत्, तर्कसंगत, और कानूनी तौर पर मान्य हो।